भारतीय हिंदी सिनेमा को सुपरस्टार देने वाले फ़िल्मकार थे ऋषिदा : फ़िल्म निर्माता सावन चौहान
ऋषिदा ऐसे पहले डायरेक्टर थे जो बिना स्क्रिप्ट के ही बेहतरीन फिल्मे बना देते थे : फ़िल्म निर्माता सावन चौहान,
ऋषिदा की 1957 में आई पहली फिल्म ‘मुसाफिर’ ने हिंदी सिनेमा के दिग्गजों को बता दिया था कि फिल्मों का ‘हेडमास्टर’ आ गया हैं : फ़िल्म निर्माता सावन चौहान
लव यू ऋषिदा सर, आपको हम कभी भूल नहीं पाएंगे : फ़िल्म निर्माता सावन चौहान
आगरा। भारतीय हिंदी सिनेमा के बेहतरीन डायरेक्टर्स की लिस्ट में यूं तो कई हिट डायरेक्टर्स के नाम हैं, लेकिन ऋषिकेश मुखर्जी ऐसे पहले डायरेक्टर थे जो बिना स्क्रिप्ट के ही बेहतरीन फिल्मे बना देते थे।उनका परफेक्शन ऐसा था कि सिर्फ़ एक चूक तो शूटिंग कैंसिल कर देते थे।
वो ऐसे डायरेक्टर थे जिन्होंने एक कलाकार को पहले स्टार और फिर सुपरस्टार बनाया।वो आज से 18 साल पहले किडनी की बीमारी के कारण आज ही के दिन वह दुनिया को अलविदा कह गए थे।
इस सन्दर्भ में फ़िल्म निर्माता सावन चौहान बताया, ऋषिकेश मुखर्जी फिल्म इंडस्ट्री के स्टार मेकर थे। उन्होंने अपने दौर में सिनेमा को लेकर लोगों का नजरिया बदला।
वह हिंदी सिनेमा के निर्माता, निर्देशकों और कलाकारों को यह बताने में कामयाब रहे कि कैसे गंभीर विषयों का ताना बाना भी कैसे हल्के-फुल्के और मजाकिया अंदाज में बुना जा सकता है, और उन्होंने कई सितारों को सिनेमा की बारिकियों से रुबरू कराया और बताया कि जीवन में अगर टाइम को अहमियत नहीं दी तो उनके साथ काम करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हैं।
फिल्मों का ‘हेडमास्टर’ आ गया
ऋषिकेश दा सिनेमा के पर्दे की ऐसी समझ रखते थे कि बॉलीवुड उन्हें इस 70 एमएम के पर्दे का महारथी मानने लगा था। ऋषिदा ने अपने करियर की शुरुआत साल 1957 में आई फिल्म ‘मुसाफिर’ से की थी और हिंदी सिनेमा के दिग्गजों का बता दिया था कि फिल्मों का ‘हेडमास्टर’ आ गया है। वो भारतीय मध्य वर्ग की बदलती संस्कृति का इशारा देने बाली सामाजिक फ़िल्मों के बहुत मशहूर हुये।
सेंसर बोर्ड वालों को फिल्म देखने का लालच
ऐसे सामाजिक शोच बाले निर्देशक फिल्मकार ना पहले कभी हुये थे ना आज तक हुए। उनकी प्रतिभा का ये हाल कि आज के सबसे सफल निर्देशक राज कुमार हिरानी उन्ही से प्रेरणा लेते है, उनको ही अपना आदर्श मानते है। उस समय सेंसर बोर्ड वाले अक्सर कहते थे कि सर ऋषिदा आपकी फिल्मो को हम बिना देखे हम सेंसर सर्टिफिकेट दे दे परंतु हमको ये लालच होता है कि इस बहाने हम आपकी फिल्म ही देख लेंगे।
1950 से लेकर 1980 के दशक तक बेहतरीन फिल्में
वो इतनी साफ़ सुथरी फिल्मे बनाते थे। आनंद में हमको रुलाते है तो चुपके चुपके या गोलमाल में हमको खूब हंसाये भी थे।ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्में कितनी भी बार देख लो, मन नहीं भरता हैं। ऋषिकेश मुखर्जी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के बेहतरीन डायरेक्टर थे। जिन्होंने 1950 से लेकर 1980 के दशक तक बेहतरीन फिल्में बनाई थीं।
उनकी ‘चुपके चुपके’ फिल्म लोगों को आज भी याद है, जिसमें पहली बार धर्मेंद्र को कॉमेडी रोल में देखा गया था। राजेश खन्ना की ‘आनंद’ को कोई कैसे भूल सकता है। उन्होंने अमिताभ बच्चन को बड़ा ब्रेक दिया था, जया बच्चन को लॉन्च किया था। ऋषिदा की बर्थ एनिवर्सिरी है, उन्होंने साल 2006 में आखिरी सांस ली थी।
चौहान ने आगे बताया, सुपर स्टार अमिताभ बच्चन जी इन्हें अपना गॉडफादर कहा करते थे। एक बार अपने ब्लॉग में बिग बी ने उन्हें याद करते हुए लिखा था- ‘हमने कोई स्क्रिप्ट नहीं सुनी, न ही कोई कहानी। हम सिर्फ सेट पर आते थे। वो (ऋषि दा) हमें कहते थे, यहां खड़े हो जाओ, यहां चलो, डायलॉग ऐसे बोल दो, सीन में अपनी बात ऐसे कहो।
42 फ़िल्मो का बेहतरीन निर्देशन
उनके डायरेक्शन का तरीका बस यही था। इसमें एक्टर्स का कोई इनपुट नहीं होता था। आप उनकी फिल्मों में जो कुछ भी देखते थे, वो केवल उनका ही इनपुट रहता था। ऋषिकेश मुखर्जी इन्हें प्यार से ऋषि दा भी कहते थे, उन्होंने 4 दसकों में 42 फ़िल्मो का बेहतरीन निर्देशन किया जो 60 के दशक से लेकर 80 के दशक तक रिलीज हुईं।
इनमें अनुपमा, सत्यकाम, आनंद, बावर्ची, अभिमान, नमक हराम, चुपके चुपके, मिली, गोलमाल, खूबसूरत, छाया, असली नकली, आशीर्वाद, गुड्डी, बावर्ची, नमक हराम, और आनंद जैसी कई शानदार और बेहतरीन फिल्मों से उन्होंने सिनेमा को जगमग किया।
ऋषिकेश दा की फिल्मों के लिए कहा जाता रहा कि वह एक मात्र ऐसे डायरेक्टर हुए, जिन्होंने जीवन की असलियत को पर्दे पर बेहद हल्के-फुल्के अंदाज में दिखाया। उन्होंने 8 बार फिल्मफेयर और 5 प्रेसिडेंट मेडल हालिस किए। 1999 में उन्हें दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। साल 2001 में उन्हें पद्म विभूषण अवॉर्ड से नवाजा गया।
क्रोनिक किडनी फेल्योर
साल 2001 में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें 27 अगस्त 2006 में बैचेनी की शिकायत के बाद हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया था। वो क्रोनिक किडनी फेल्योर से जूझ रहे थे और उन्हें डायलिसिस के लिए लीलावती हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया था।
दिग्गज फिल्म निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी का निधन साल 2006 में 27 अगस्त को हुआ था। ऐसे सामाजिक और समानता की सोच बाले महान फिल्मकार ना पहले कभी हुये ना आज तक हुए हैं। लव यू ऋषिदा सर, आपको हम कभी भूल नहीं पाएंगे।