फेफड़ों के कैंसर का मुख्य कारण धूम्रपान ,67,000 नए मामले हर साल

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“पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन, केजीएमयू में फेफड़ों के कैंसर के सभी वर्गों के रोगियों को विश्व स्तरीय निदान और उपचार के विकल्प प्रदान करने का प्रयास करते हैं।

प्रोफेसर (डॉ.) वेद प्रकाश

विश्व फेफड़े के कैंसर दिवस की स्थापना फेफड़ों के कैंसर की व्यापकता और प्रभाव पर वैश्विक ध्यान दिलाने के लिए की गई थी। इस दिन को पहली बार 2012 में फोरम ऑफ इंटरनेशनल रेस्पिरेटरी सोसाइटीज (एफआईआरएस) और इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ लंग कैंसर (आईएएसएलसी) के बीच सहयोग के माध्यम से मान्यता दी गई थी। तब से, यह 1 अगस्त को प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण वैश्विक कार्यक्रम बन गया है।

फेफड़े का कैंसर वंचित समुदायों को असमान रूप से प्रभावित करता है। सभी के लिए सस्ती और सुलभ फेफड़ों के कैंसर की जांच, निदान और उपचार के विकल्प सुनिश्चित करके, हम देखभाल के अंतर को समाप्त कर सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हर किसी को फेफड़ों के कैंसर से लड़ने का उचित मौका मिले।

फेफड़े का कैंसर महत्वपूर्ण तथ्य और संख्याएँ

फेफड़ों का कैंसर दुनिया भर में दूसरा सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है, पूरे विश्व में वर्ष 2020 में फेफड़े के कैंसर के 22 लाख नये मरीजों का पता चला है। स्तन कैंसर दुनिया भर में सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है ।

भारत में स्तन, मुंह और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के बाद फेफड़ों का कैंसर चैथा सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है ।

मृत्यु दरः फेफड़े का कैंसर, वैश्विक स्तर पर कैंसर से संबंधित मौतों का प्रमुख कारण है, जिससे सालाना लगभग 18 लाख फेफड़े के कैंसर से ग्रसित व्यक्तियो की मुत्यु होती है।
फेफड़ों के कैंसर का प्राथमिक कारक धूम्रपान है, जो लगभग 85ः मामलों में योगदान देता है। अन्य कारकों में निष्क्रिय धूम्रपान, रेडॉन गैस, एस्बेस्टस और अन्य पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना एवं आनुवांशिक कारक शामिल है।

फेफड़ों के कैंसर के लिए 5 साल जीवित रहने की दर कैंसर की स्टेज के अनुसार भिन्न होती है। शुरूआती स्टेज के फेफड़ों के कैंसर के लिए, 5 साल की जीवित रहने की दर लगभग 59ः है, जबकि फैले हुए एडवांस स्टेज के फेफड़े के कैंसर के लिए यह दर लगभग 6ः तक गिर जाती है।

सीटी स्कैन से प्रारंभिक स्टेज के फेफड़ों के कैंसर का पता लगा सकते हैं

फेफड़े के कैंसर के कुल केस में लगभग 10 से 15 प्रतिशत केस धूम्रपान न करने वाले होते है

महिलाओं की तुलना में पुरुषों में फेफड़ों के कैंसर अधिक होता हैं, परन्तु आजकल यह देखा जा रहा है कि महिलाओं में भी फेफड़ों के कैंसर की दर बढ़ रही है, जिसका प्रमुख कारण पिछले दशकों में महिलाओं में धूम्रपान की बढ़ती दर है।

अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में, फेफड़ों के कैंसर का वार्षिक वित्तीय बोझ, 1640 हजार करोड रूपये से अधिक होने का अनुमान है।

भारत में फेफड़ों का कैंसर के प्रमुख आंकड़े और तथ्य
फेफड़ों का कैंसर भारत में सबसे आम कैंसरों में से एक है। भारतवर्ष में अनुमानित रूप से लगभग 67,000 नए मामले हर साल सामने आते है।

भारतीयों में पुरूषों में फेफड़े का कैंसर मृत्यु का प्रमुख कारण है, जो सभी कैंसर से होने वाली मौतों का लगभग 9.3ः है।

भारत में प्रति 1 लाख व्यक्तियों में 7.6 पुरूष एवं 2.1 महिलायें फेफड़े के कैंसर से ग्रसित है।

फेफड़े के कैंसर के लिए धूम्रपान एक प्रमुख कारक है, जो भारत में फेफड़ों के कैंसर के लगभग 85ः मामलों में योगदान देता है। अन्य महत्वपूर्ण कारकों में खाना पकाने के ईंधन से इनडोर वायु प्रदूषण, व्यावसायिक जोखिम (जैसे, एस्बेस्टस), और बाहरी वायु प्रदूषण शामिल हैं।

भारत में महिलाओं की तुलना में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर काफी ज्यादा होता है। फेफड़ों के कैंसर के लगभग 70ः मामले पुरुषों में होते हैं।

भारत में फेफड़ों के कैंसर की 5 साल की जीवित रहने की दर 5-10ः है जो कि विश्व की तुलना में काफी कम है, जिसका मुख्य कारण देर से निदान और उन्नत उपचार विकल्पों तक सीमित पहुंच है।

भारत में फेफड़ों के कैंसर के इलाज की लागत उपचार के प्रकार और अस्पताल के आधार पर व्यापक रूप से भिन्न होती है। सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी सहित व्यापक देखभाल के लिए औसतन यह 5 लाख रुपये से 20 लाख रुपये तक हो सकता है।

फेफड़े के कैंसर के प्रकारः नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर (एनएससीएलसी) सबसे आम प्रकार है, जो लगभग 80-85 मामलों में होता है, जबकि स्मॉल सेल लंग कैंसर (एससीएलसी) शेष 15-20ः मामलों में होता है।

फेफड़े के कैंसर के कारण

प्रभावी रोकथाम और शीघ्र पता लगाने के लिए जोखिम कारकों को समझना महत्वपूर्ण है। फेफड़ों के कैंसर के प्रमुख जोखिम कारकों में शामिल हैं।

1. धूम्रपानः फेफड़ों के कैंसर का प्रमुख कारण, लगभग 85ः मामलों के लिए जिम्मेदार है। सिगरेट के धुएं में कार्सिनोजेन्स होते हैं जो फेफड़ों की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं और कैंसर का कारण बनते हैं।

2. सेकेंडहैंड धुआंः सेकेंडहैंड धुएं के संपर्क में आने से भी फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।

3. रेडॉन एक्सपोजरः रेडॉन, एक प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली रेडियोधर्मी गैस है जो कि कुछ औद्योगिक उद्यमों में इस्तेमाल होता है और फेफड़ों के कैंसर के खतरे को बढ़ाता है।

4. एस्बेस्टस एक्सपोजरः अक्सर व्यावसायिक परिवेश में एस्बेस्टस धातु का साँस द्वारा अंदर जाता है और फेफड़ों के कैंसर करा सकता है।

5. अनुवांशिक कारण भी फेफडे के कैंसर के लिए जिम्मेंदार है।

6. वायु प्रदूषणः बाहरी वायु प्रदूषण, विशेष रूप से सूक्ष्म कण (पीएम 2.5) के लंबे समय तक संपर्क में रहने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।

7. पुरानी फेफड़ों की बीमारीः क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), टी0बी0 और पिछले फेफड़ों के संक्रमण जैसी बीमारियां भी फेफड़ों के कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती हैं।

8. व्यावसायिक जोखिमः कार्यस्थल में कुछ रसायनों और पदार्थों, जैसे आर्सेनिक, क्रोमियम, निकिल और डीजल निकास के संपर्क में आने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।

फेफड़े के कैंसर के लक्षण

लगातार खांसी रहना, खांसी में खून आना, सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, गला बैठना, वजन घटना, भूख न लगना, थकान, बार-बार संक्रमण होना, चेहरे या गर्दन में सूजन, हड्डी में दर्द, सिरदर्द, इत्यादि लक्षण फेफडे के कैंसर के रोगियों को हो सकते है।

परीक्षणः इमेजिंगः- छाती का एक्स-रे, सीटी स्कैन ,पीईटी स्कैन (पॉजिट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी)

एमआरआई- कुछ मामलों में कैंसर के प्रसार का पता लगाने के लिये विभिन्न हिस्सों का एम,आर,आई कराकर कैसर का पता लगाया जा सकता है।

बलगम की जाँचः कैंसर कोशिकाओं को फेफड़ों से निकले बलगम के नमूने की माइक्रोस्कोप से जाँच जाती है।

बायोप्सी
ब्रोंकोस्कोपी
सुई बायोप्सी

थोरैसेन्टेसिसः यदि फेफड़ों के झिल्ली में पानी में कैंसर कोशिकाओं की जांच करके कैसर का पता लगाया जा सकता है।

सर्जिकल बायोप्सीः कुछ मामलों में, बड़े ऊतक का नमूना प्राप्त करने के लिए थोरैकोस्कोपी या थोरैकोटॉमी जैसी विधि का प्रयोग करके कैंसर की जांच की जाती है।
माॅलीक्यूलर टेस्ट- बायोप्सी सैम्पल की विशिष्ट आनुवंशिक उत्परिवर्तन या बायोमार्कर (जैसे, ईजीएफआर, एएलके, केआरएएस) का टेस्ट करके कैंसर की पहचान एवं इलाज किया जा सकता है।

रक्त परीक्षणः नए रक्त परीक्षण, जिन्हें लिक्विड बायोप्सी कहा जाता है, इसमें ट्यूमर डीएनए से आनुवंशिक उत्परिवर्तन का पता लगाकर कैंसर की जांच कर सकते है।
मीडियास्टिनोस्कोपी

एंडोब्रोनचियल अल्ट्रासाउंड (ईबीयूएस)

एक बार फेफडे के कैंसर का सटीक रूप से पता चलने के बाद विभिन्न परीक्षणों से स्टेज का पता चलने के उपरान्त सर्जरी, कीमोथेरेपी इत्यादि का निर्णय लेकर समुचित रूप से इलाज किया जाता है।

फेफड़ों के कैंसर की रोकथामः

धूम्रपान छोड़ें
निष्क्रिय धूम्रपान से बचें
व्यावसायिक खतरों से बचें
वायु प्रदूषण को कम करें-

वायु गुणवत्ता में सुधार करने वाली नीतियों और प्रथाओं का समर्थन करें, जिससे वाहन उत्सर्जन और औद्योगिक प्रदूषकों को कम किया जा सके।

स्वस्थ आहारः फलों और सब्जियों से भरपूर आहार फेफड़ों के कैंसर के खतरे को कम करने में मदद कर सकता है। इन खाद्य पदार्थों में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट और अन्य पोषक तत्व फेफड़ों के समग्र स्वास्थ्य में सहायता कर सकते हैं नियमित व्यायाम

उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों के लिए स्क्रीनिंगः सीटी स्कैन उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों में फेफड़ों के कैंसर का शीघ्र पता लगा सकते हैं

फेफड़ों के कैंसर का उपचार

फेफड़ों के कैंसर का उपचार कई कारकों पर निर्भर करता है, जिसमें कैंसर के प्रकार और स्टेज के साथ-साथ रोगी का समग्र स्वास्थ्य भी शामिल है
सर्जरीः शुरूआती स्टेज के फेफड़ों के कैंसर के लिए सर्जरी की जा सकती है।

विकिरण थेरेपीः कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करने और मारने के लिए उपयोग किया जाता है, अक्सर इसका उपयोग तब किया जाता है जब सर्जरी का कोई विकल्प नहीं होता है।
कीमोथेरेपीः कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए दवाओं का उपयोग किया जाता है, इसका इस्तेमाल एडवांस स्टेज के फेफड़ो के कैंसर के लिया।

लक्षित थेरेपीः कुछ विशेष रूप के फेफड़ों के कैंसर के लिये उपयोग आमतौर पर विशिष्ट आनुवंशिक उत्परिवर्तन वाले कैंसर के लिए किया जाता है।

इम्यूनोथेरेपीः कैंसर से लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का उपयोग करती है।

विश्व फेफडे के कैंसर दिवस के दिन विश्व में कैंसर सहायता के लिए संचालित संगठनों, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों, शोधकर्ताओं में जागरूकता बढ़ाने, कैंसर का शीघ्र पता लगाने को बढ़ावा देने और फेफड़ों के कैंसर से प्रभावित लोगों का समर्थन करने के अपने प्रयासों में एकजुट होने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है।

विभिन्न गतिविधियों और अभियानों के माध्यम से, विश्व फेफड़े के कैंसर दिवस ने फेफड़ों के कैंसर के खिलाफ लड़ाई में चल रहे अनुसंधान और नवाचार के महत्व को सफलतापूर्वक आगे बढाया है।

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, यूपी लखनऊ में पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग गर्व से विश्व फेफड़े के कैंसर दिवस मना रहा है। यह प्रतिष्ठित विभाग ब्रोंकोस्कोपी, थोरैकोस्कोपी और ईबीयूएस अल्ट्रासाउंड सहित अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है, जो फेफड़ों के कैंसर का सटीक और समय पर निदान सुनिश्चित करता है।

इसके अतिरिक्त, विभाग केंद्रीय वायुमार्ग अवरोध जैसे जटिल मामलों के समाधान के लिए रिजिड ब्रोंकोस्कोपी और क्रायो-बायोप्सी एवं एयर-वे स्टैन्टिंग जैसी उन्नत प्रक्रियाएं प्रदान करता है। अत्याधुनिक देखभाल प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध, विभाग नवीनतम दिशानिर्देशों के अनुरूप, कीमोथेरेपी, टार्गेटड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी सहित फेफड़ों के कैंसर के लिए नवीनतम उपचारों का प्रबंधन करता है।


इस कार्यक्रम में प्रो.वेद प्रकाश विभागाध्यक्ष पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर मेडिसिन, प्रो.राजेन्द्र प्रसाद भूतपर्व डायरेक्टर वी.पी.सी.आई, प्रो.आर.ए.एस कुशवाहा, रेस्पिरेटरी मेडिसिन, प्रो.विजय कुमार, सर्जिकल अंकोलाॅजी विभाग, प्रो.राजीव गुप्ता, रेडियेशन आंकोलाॅजी विभाग, प्रो.शैलेन्द्र कुमार, थोरैसिक सर्जरी विभाग, डा.चंचल राणा अपर आचार्य पैथोलाॅजी विभाग, डा.शिव राजन, अपर आचार्य, सर्जिकल अंकोलाॅजी विभाग, डा.इशा जफा, सहायक आचार्य मेडिकल अंकोलाॅजी, डा.सचिन,डा.अरिफ, डा.अतुल, डा.मृत्युंजय, डा.अनुराग, डा.दीपक, डा.शुभ्रा, डा.संदीप, डा.अपर्णा इत्यादि लोग सम्मिलित हुए।