सुप्रीम कोर्ट ने आज (4 नवंबर) एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 348(1) की वैधता को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हिंदी में करने की मांग की गई थी।
विशेष रूप से, अनुच्छेद 348(1) में प्रावधान है कि सर्वोच्च न्यायालय और सभी उच्च न्यायालयों में सभी कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में की जानी चाहिए। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी।
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केवल हिंदी ही क्यों? हम सभी राज्यों की अपीलें सुनते हैं : सुप्रीम कोर्ट
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि जनहित याचिका में केवल हिंदी भाषा के लिए ही विशेष राहत क्यों मांगी गई है, जबकि देश के सभी अलग-अलग राज्यों से संबंधित पक्ष शीर्ष अदालत में मामले दायर करते हैं।
“केवल हिंदी क्यों? हमारे पास सभी राज्यों से अपील और एसएलपी आते हैं। क्या अब हमें संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त हर भाषा में पक्षों की सुनवाई करनी चाहिए? यह कैसे काम करता है?”
उन्होंने आगे बताया कि चुनौती के तहत प्रावधान मूल संविधान का हिस्सा रहा है।
“आप संविधान के अनुच्छेद 348(1) की वैधता को कैसे चुनौती दे सकते हैं? यह मूल संविधान का हिस्सा है।”
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट में भाषाई बाधा के कारण न्याय तक पहुंच से वंचित होना पड़ा।
पीठ ने मामले पर आगे विचार करने से इनकार कर दिया और इसे खारिज कर दिया।
“रिट याचिका में योग्यता की कमी है और तदनुसार खारिज किया जाता है।”