लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 50 से कम छात्रों वाले बदहाल बेसिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों को बंद कर दूसरे स्कूलों में विलय करने का फैसला लिया है। ऐसे स्कूलों की संख्या करीब 27 हजार बताई जा रही है।
सरकार का तर्क है कि इससे शिक्षा व्यवस्था में सुधार होगा। हालांकि यूपी सरकार के इस फैसले पर बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने नाराजगी जाहिर की है।
बीएसपी सुप्रीमो का कहना है कि इससे गरीब बच्चों को शिक्षा कैसे मिलेगी? सरकार को ऐसे स्कूलों की हालत में सुधार करना चाहिए, न कि इन्हें बंद करके दूसरे स्कूलों में विलय कर देना चाहिए। उधर वहीं दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाए हैं।
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मायावती ने स्कूल बंद करने पर उठाए सवाल
बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया है कि उत्तर प्रदेश सरकार का 50 से कम छात्रों वाले बदहाल 27764 परिषदीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में जरूरी सुधार करके उन्हें बेहतर बनाने के उपाय करने के बजाय उनको बंद करके उनका दूसरे स्कूलों में विलय करने का फैसला उचित नहीं।
ऐसे में गरीब बच्चे आखिर कहां और कैसे पढ़ेंगे? उत्तर प्रदेश व देश के अधिकतर राज्यों में खासकर प्राइमरी व सेकण्डरी शिक्षा का बहुत ही बुरा हाल है जिस कारण गरीब परिवार के करोड़ों बच्चे अच्छी शिक्षा तो दूर सही शिक्षा से भी लगातार वंचित हैं। ओडिसा सरकार की तरफ से कम छात्रों वाले स्कूलों को बंद करने का भी फैसला अनुचित है।
सरकारों की इसी प्रकार की गरीब व जनविरोधी नीतियों का परिणाम है कि लोग प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने को मजबूर हो रहे हैं, जैसा कि सर्वे से स्पष्ट है। सरकार का शिक्षा पर समुचित धन व ध्यान देकर इनमें जरूरी सुधार करने के बजाय इनको बंद करना ठीक नहीं है।
पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने सरकार को घेरा
वहीं दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाए हैं।
उन्होंने सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक पोस्ट शेयर की है और दिल्ली के स्कूलों का जिक्र करते हुए यूपी की योगी सरकार पर हमला किया है। केजरीवाल ने कहा पिछले 10 साल में हमने बड़ी मेहनत से दिल्ली के सरकारी स्कूलों को शानदार बनाया है, वल्र्ड क्लास सुविधाएं और शिक्षा का इंतजाम किया है।
वहीं दूसरी तरफ यूपी के सरकारी स्कूल हैं जिन्हें बंद करने की तैयारी चल रही है। इसके आगे पूर्व मुख्यमंत्री ने ये भी कहा कि वो दिल्ली के लोगों से सिर्फ इतना कहना चाहते हैं कि अगर उन्होंने एक बार फिर से बीजेपी के पक्ष में मतदान किया तो बीजेपी दिल्ली के स्कूलों को भी इसी तरह बर्बाद कर देगी जैसे उत्तर प्रदेश के स्कूलों को किया जा रहा है।
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27764 परिषदीय स्कूलों में 50 से कम छात्र
दरअसल प्रदेश के 27764 परिषदीय स्कूलों में 50 से कम छात्र हैं। ऐसे में कम संख्या वाले स्कूलों का ग्राम पंचायत के दूसरे स्कूल या अन्य ग्राम पंचायत के स्कीलों में विलय किया जा सकता है। डीजी कंचन वर्मा ने जून में यू-डायस पोर्टल से हर जिले के ऐसे स्कूलों का ब्योरा इक_ा किया था, जिनमें छात्र संख्या 50 से कम है। ऐसे स्कूलों की संख्या 27,931 थी। डीजी ने 23 अक्टूबर को शिक्षा विभाग की समीक्षा बैठक की थी।
इस बैठक में उन्होंने कहा था कि भारत सरकार द्वारा स्कूलों को पूरी तरह से व्यवहारिक बनाने की दिशा में कदम उठाया जा रहा है। कम नामांकन वाले स्कूलों का नजदीकी स्कूलों के साथ विलय किया जाएगा। सरकार की मिड डे मील योजना के बावजूद ऐसे स्कूलों में बच्चे पढऩे नहीं आते हैं। इसी वजह से अब सरकार ने ऐसे स्कूल जहां पर बच्चों की संख्या कम है उन्हें ऐसे स्कूलों में विलय करने का फैसला लिया है जहां पर बच्चों की संख्या ज्यादा है।
शिक्षा विशेषज्ञों ने बताया चिंताजनक, बड़े संकट की आहट
शिक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक प्रदेश के 27764 परिषदीय स्कूलों में 50 से कम छात्र कैसे हुए। यह अपने आप में भी एक बड़ा सवाल है। सरकार की जवाबदेही है कि आखिर सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या क्यों घटी है। क्या अध्यापक छात्रों को उचित शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं। क्या सरकारी स्कूलों के पास वह सुविधाएं छात्रों को नहीं उपलब्ध करायी जा रही है जो प्राइवेट स्कूलों में है।
शिक्षा विशेषज्ञों की मानें तो करोड़ों रुपयों का बजट होने के बावजूद सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था का बदहाल स्थिति होना भी अपने आप में बड़ा सवाल है। वहीं राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि स्कूलों का इस तरह बंद करना अपने आप में बड़ा सवाल है।
शिक्षा के जानकारों का कहना है कि वह दिन दूर नहीं है जब सरकारी स्कूलों पर उद्योगपतियों का कब्जा हो जायेगा। सरकारी स्कूलों के नाम पर काफी जमीने हैं। सरकार इन जमीनों को व्यवसायीकरण कर सकती है। इसके अलावा स्कूलों का निजीकरण कर गरीब अभिभावकों से मोटी रकम फीस के रूप में वसूल किए जाने की आशंका भी जतायी जा रही है।