भूलने की समस्या हो सकती है अल्जाइमर , इससे बचने के लिए क्या करें?

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भूल जाने की समस्या बहुत आम है. कोई ही व्यक्ति होगा जो कभी कुछ न भूलता हो. कोई अपनी गाड़ी की चाबी रखकर भूल जाता है तो कोई दुकान से सामान खरीदकर वहीं छोड़ देता है और खाली हाथ बाहर आ जाता है. कोई किसी का नाम भूल जाता है तो कोई मम्मी-पापा या बॉस का बताया हुआ काम भी भूल जाता है. अब हर कोई फोन कॉल पर रहता है तो आजकल लोग कॉल करने का वादा करके कॉल करना भी भूल जाते हैं.

क्या आपके अंदर भी ऐसी कोई समस्या है

क्या आप भी अपनी चीजें भूलने लगे हैं, क्या आप भी बात कहते-कहते अचानक रुक जाते हैं और अपनी बात पूरी नहीं कर पाते हैं? अगर इस तरह की भूलने संबंधी कोई भी दिक्कत आपको है तो फिक्र करने की जरूरत नहीं है, आप ऐसे अकेले नहीं हैं, समाज में ऐसे बहुत लोग हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हर कोई चीजें भूलता है. कोई आज भूल रहा है तो कोई कल भूलेगा. भूलने-भुलाने की ये प्रक्रिया जिंदगीभर चलती रहती है.

उम्र के साथ-साथ मेमोरी बदलती रहती है, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि भूलने की समस्या जिंदगी के हर पड़ाव पर होती है और हो सकती है. हां, इतना जरूर है कि जिनकी उम्र ज्यादा हो जाती है उनके अंदर भूलने की प्रवृत्ति ज्यादा पाई जाती है. 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में से करीब पचास फीसदी ऐसे होते हैं जिनकी भूलने की आदत, उनके जवानी के वक्त से ज्यादा होती है.

वो एज का एक इफेक्ट होता है. अक्सर वो लोग नाम भूल जाते हैं, अपनी चीजें रखकर भूल जाते हैं या फिर उन्होंने अपने बच्चों से क्या कहा था, ये भी भूल जाते हैं. तो क्या बढ़ती उम्र के कारण व्यक्ति के अंदर भूलने की प्रवृत्ति आ जाती है? तो इसका जवाब ये है कि सिर्फ उम्र बढ़ जाना इसका कारण नहीं है.

दरअसल, होता ये है कि व्यक्ति जब वरिष्ठता के पड़ाव में पहुंच जाता है तो वो दिमाग का इस्तेमाल कम करने लगता है यानी उनके दिमाग की एक्टिविटी कम हो जाती है, इस कारण वो चीजों को ज्यादा भूलने लग जाते हैं. इसलिए जरूरी है कि सीनियर सिटीजन हो जाने के बाद भी अगर अलग-अलग किस्म की एक्टिविटी में हिस्सा लेकर ब्रेन को एक्टिव रखा जाए तो मेमोरी लॉस से बचा जा सकता है.

क्या होती है मेमोरी?

मेमोरी के अलग-अलग रूप होते हैं. हम ये जानते हैं कि अगर हम कोई मेमोरी स्टोर कर रहे  हैं तो इसका मतलब ये है कि हमारे दिमाग में कोई जानकारी जमा हो रही है. बस बात ये होती है कि वो जानकारी क्या है, और हम उसे कितने समय तक याद रख सकते हैं ये निर्भर करता है कि वो किस तरह की मेमोरी या जानकारी है. मेमोरी मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है- शॉर्ट टर्म मेमोरी जिसे वर्किंग मेमोरी भी कहते हैं और लॉन्ग टर्म मेमोरी. मेमोरी के प्रकार इस बात पर निर्भर करते हैं कि कितने समय तक आपने उसे अपने दिमाग में स्टोर करके रखा है.

भूलने की समस्या कैसे पैदा होती है?

काफी लोगों को लगता है कि भूलने की समस्या अल्जाइमर रोग होने का शुरुआती लक्षण होता है. लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है. भूलने की समस्या किसी और गंभीर बीमारी जैसे-स्यूडोडिमेंशिया, माइल्ड कॉग्निटिव इम्पेयरमेंट या डिमेंशिया का कारण भी हो सकती है. मेमोरी से जुड़ी कुछ प्रॉब्लम्स ऐसी भी होती हैं जो स्वास्थ्य दिक्कतों से जुड़ी होती हैं और उनका इलाज हो सकता है. जैसे- अगर कोई किसी रोग की दवाई खा रहा हो तो हो सकता है दवाई के असर से व्यक्ति अपनी कुछ चीजें या बातें भूलने लग जाए.

विटामिन बी-12 की कमी, शराब की लत, ट्यूमर, दिमाग में इंफेक्शन, ब्रेन में क्लॉटिंग जैसी बीमारियां भी मेमोरी लॉस या डिमेंशिया यानी विक्षिप्त अवस्था का कारण हो सकती हैं. इनके अलावा थायरॉइड, किडनी और लिवर से जुड़ी दिक्कतें भी मेमोरी लॉस को बढ़ावा दे सकती हैं. इसलिए जरूरी है कि डॉक्टर्स इस तरह की बीमारियों का इलाज जल्द से जल्द करें, ताकि मरीज को मेमोरी लॉस जैसे फेज से न गुजरना पड़े.

डिमेंशिया ये ऐसी अवस्था होती है जिसमें इंसान की सोचने की क्षमता कम होने लगती है, मेमोरी घटने लगती है और उसकी स्किल्स बहुत ही गंभीर तरीके से प्रभावित हो जाती हैं और हालत ये हो जाती है कि व्यक्ति अपने रोजमर्रा के काम भी ठीक से नहीं कर पाता. डिमेंशिया अपने आप में कोई बीमारी नहीं है, बल्कि ये कुछ लक्षणों का एक समूह है जो अल्जाइमर जैसे रोगों के कारण होता है. जिन लोगों को डिमेंशिया होता है वो अपनी मानसिक शक्ति खो देते हैं.

डिमेंशिया से बचने के लिए क्या करें?

अगर आपके रिलेटिव या दोस्तों में किसी को मेमोरी लॉस की प्रॉब्लम हो तो उन्हें डॉक्टर को जरूर दिखाएं. डॉक्टर आपके पेशंट को न्यूरोलॉजिस्ट के पास भी रेफर कर सकते हैं. जिन लोगों को डिमेंशिया के लक्षण हैं उन्हें सावधानी बरतनी चाहिए ताकि स्ट्रोक से बचा सके. ब्लड प्रेशर को कंट्रोल रखें, हाई कोलेस्ट्रोल की मॉनिटरिंग करते रहें और उसका ट्रीटमेंट कराएं.

डायबिटीज को कंट्रोल रखें और स्मोकिंग करने से बचें. परिजन और दोस्त डिमेंशिया की शुरुआती स्टेज में अपने करीबियों का ध्यान रखें और उनके डेली के काम करने में मदद करें. फिजिकल एक्टिविटीज कराएं. डिमेंशिया से पीड़ित लोगों को लगातार रुटीन लाइफ के बारे में जानकारी देते रहें, अपडेट करते रहें जैसे कि उन्हें टाइम बताते रहें, वो कहां रहते हैं ये बताते रहें और घर व समाज में क्या-क्या चल रहा है इसको लेकर भी उन्हें अपडेट करते रहें.

डॉ. सचिन कंधारी
न्यूरोसर्जन और मैनेजिंग डायरेक्टर
आईबीएस हॉस्पिटल्स

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