सावधन! राजधानी लखनऊ में साढ़े तीन साल से लागू है धारा-144

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Lucknow: साल 2019 के दिसंबर महीने में सीएए-एनआरसी प्रदर्शन से सूबे की राजधानी लखनऊ में जारी धारा 144 पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली लागू होने के साथ ही कारवां बढ़ता गया।

आलम यह है कि पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली लागू हुए साढ़े तीन से अधिक समय बीतने के साथ ही धारा 144 की मियाद भी समय के साथ बढ़ायी जाती रही। खास बात यह है कि धारा-144 जहां एक ओर हाईटेक पुलिस के एक नया हथियार उभर कर आया वहीं दूसरी ओर शहरवासी वासी भी इसके अनुकूल हो गए। अब शहर में धारा-144 का लागू होना मात्र एक सामान्य प्रकिया हो गई है।

हर माह बढ़ाई जाती रही मियाद

दरअसल वर्ष 2019 दिसंबर में लखनऊ के पुराने शहर में सीएए-एनआरसी की हिंसक प्रदर्शन व आगजनी की घटना हुई। उस समय शहर की कानून -व्यवस्था की कमान तत्कालीन एसएसपी के हाथ में थी। जनवरी 2020 में योगी सरकार ने सूबे की राजधानी लखनऊ और नोएडा में कमिश्नरेट प्रणाली की शुरूआत की। आईपीएस सुजीत पाण्डेय को शहर का पहला पुलिस कमिश्नर बनाया गया।

बंथरा में हुए जहरीली शराब कांड में छह लोगों की मौत के चलते सुजीत पांडेय को नवंबर 2020 में हटाते हुए आईपीएस डीके ठाकुर को शहर का पुलिस कमिश्नर बनाया गया। करीब एक साल नौ माह के बाद अगस्त 2022 में 1993 बैच के आईपीएस एसबी शिरडकर शहर के तीसरे पुलिस कमिश्नर के रूप में कमान संभाली। खास बात यह है कि वर्ष 2019 से लागू धारा-144 की मियाद समय के साथ ही बढ़ायी जाती रही। इस दौरान कोरोना महामारी संक्रमण काल से लेकर विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक पर्टियों ने प्रदर्शन कर जोर आजमाइश भी किया। यहां तक कि विभिन्न संगठनों के प्रदर्शनकारियों ने अपने-अपने तरीके से संगठित होकर धरना प्रदर्शन किया। इस दौरान पुलिस ने धारा 144 की शाक्तियों के तहत कुछ लोगों के खिलाफ रहम तो कुछ के खिलाफ केस दर्ज भी किया।

डीएम के पास होता था धारा-144 लागू करने का अधिकार

कमिश्नर प्रणाली में किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए पुलिस को डीएम समेत अन्य अधिकारियों के फैसले के आदेश का इंतजार नहीं करना पड़ता। पुलिस खुद किसी भी स्थिति में फैसला ले सकती है। जिले की कानून व्यवस्था से जुड़े सभी फैसलों को लेने का अधिकार पुलिस कमिश्नर के पास होता है। वहीं जिस जनपद में पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली लागू नहीं है वहां अब भी डीएम के पास ही धारा-144 लागू के साथ ही थानेदार की तैनाती समेत अन्य अधिकार सुरक्षित हैं। यानि डीएम ही जिले का सुपर बॉस होता है।

 

 हाईटेक पुलिस के लिए हथियार बनी धारा-144

लखनऊ शहर में संगठित अपराध को रोकने व कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए धारा 144 हाईटेक पुलिस के लिए एक मुफीद हथियार बन चुका है। जिसका नतीजा यह है कि पुलिस कमिश्नरेट के साढ़े तीन साल से अधिक समय बीतने के बावजूद भी धारा-144 की मियाद लगातार बढऩे का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

गत वर्ष संयुक्त पुलिस आयुक्त की ओर से 10 जनवरी,10 फरवरी,20 मई व 2 जुलाई को एक-एक माह के लिए धारा-144 की मियाद बढ़ाए जाने का आदेश दिया गया था। वहीं बीते रविवार को संयुक्त पुलिस आयुक्त कानून-व्यवस्था उपेन्द्र कुमार अग्रवाल ने पत्र जारी कर 30 अक्टूबर तक धारा 144 लागू की मियाद बढ़ाए जाने का आदेश दिया है।

शांति व्यवस्था के मद्देनजर लगाई जाती है धारा 144

सीआरपीसी की धारा 144 शांति कायम करने या किसी आपात स्थिति से बचने के लिए लगाई जाती है। धारा 144 का मुख्य मकसद कई लोगों का एक जगह पर इकठ्ठा होने से रोकना है।

धारा-144 जहां लगती है, उस इलाके में पांच या उससे ज्यादा आदमी एक साथ जमा नहीं हो सकते हैं। दंगा, लूटपाट, हिंसा, तनाव आदि की स्थिति को देखते हुए धारा 144 लागू की जाती है। किसी भी शहर में, जिले में या राज्य में शांति व्यवस्था बिगडऩे की आशंका हो तो 144 लागू कर दिया जाता है। इतना ही नहीं आम नागरिकों के बीच हिंसा होने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचने की आशंका को देखते हुए धारा 144 लागू कर दी जाती है।

उल्लंघन पर सजा का प्रावधान

धारा-144 को 2 महीने से ज्यादा समय तक नहीं लगाया जा सकता है। अगर राज्य सरकार को लगता है कि इंसानी जीवन को खतरा टालने या फिर किसी दंगे को टालने के लिए इसकी जरूरत है तो इसकी अवधि को बढ़ाया जा सकता है। लेकिन इस स्थिति में भी धारा-144 लगने की शुरुआती तारीख से छह महीने से ज्यादा समय तक इसे नहीं लगाया जा सकता है। धारा 144 का उल्लंघन करने पर किसी भी व्यक्ति के खिलाफ दंगे में शामिल होने के लिए मामला दर्ज किया जा सकता है। इसके लिए अधिकतम तीन साल कैद की सजा हो सकती है।

 धारा-144 और कफ्र्यू के बीच फर्क

धारा-144 और कफ्र्यू दोनों की अलग है। कफ्र्यू बहुत ही खराब हालत में लगाया जाता है। उस स्थिति में लोगों को एक खास समय या अवधि तक अपने घरों के अंदर रहने का निर्देश दिया जाता है। मार्केट, स्कूल, कॉलेज आदि को बंद करने का आदेश दिया जाता है। सिर्फ आवश्यक सेवाओं को ही चालू रखने की अनुमति दी जाती है। इस दौरान ट्रैफिक पर भी पूरी तरह से पाबंदी रहती है। जबकि धारा 144 लागू होने पर पूर्वअनुमति प्राप्त किए बिना पांच या उससे अधिक व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थान व जुलूस में समूह बनाकर सम्मिलित नहीं हो सकते।